( तर्ज - अजि ! कौन जगा जगनेकी है ० )
नहि पार लगे प्रभुके गुणका ,
है कठन बडा लखना मनका ॥टेक ॥
बनमें जोगी योग निहारे ,
जप तप कर - करके मन हारे ।
पार मिले न जरा उनका ,
है कठन बडा ० ।। १ ।।
पंडित शास्त्र - वेद सब ढूँढे ,
जोगी उस कारण सर मूँडे ।
बिगड पडे चलना तनका ,
है कठन बडा ० ॥ २ ॥
कइ तो माल जपे जपमाँही ,
कामकि आस धरी दिल लाई ।
भूल पडे , सधना जिनका ,
है कठन बडा ० ।। ३ ।।
तुकड्यादास कहे गुरु - सेवा ,
हरिके पास लगावत नौवा ।
धन्य हुआ किस्मत उनका ,
है कठन बडा ० ॥ ४ ॥
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